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Kabir Ke Dohe in Hindi Pdf , कबीर दास जी के दोहा हिंदी में अर्थ सहित।

Kabir Das Kaun The | कबीर के दोहे अर्थ सहित

कबीर दास एक प्रसिद्ध हिंदी भक्ति कवि थे जो 15वीं और 16वीं शताब्दी के दौरान भारत में थे। वह संत कवि थे जिन्होंने अपनी रचनाओं के माध्यम से सामाजिक और धार्मिक संदेशों को लोगों तक पहुँचाया। उनकी रचनाएँ अधिकतर अवधी भाषा में हैं और वे भारतीय साहित्य के महान कवि में से एक माने जाते हैं।

Kabir Das Ji Ke Guru Kaun The – Kabir Das ka Jivan Parichay

कबीर दास के गुरु का नाम स्वामी रमानंद था। स्वामी रमानंद एक प्रसिद्ध संत थे जो 15वीं सदी के दौरान भारत में थे। उन्होंने समाज में जाति-धर्म से उत्पन्न समस्याओं का विरोध किया था और अपने शिष्यों को एकता और समानता के संदेश दिए थे। स्वामी रमानंद के उपदेशों से कबीर जैसे कई अन्य संत भी प्रभावित हुए थे।

Kabir Ke Dohe in Hindi Pdf| Sant Kabir Ke Dohe in Hindi

कबीर दास जैसे महान कवि के दोहे भारतीय संस्कृति के एक महत्वपूर्ण हिस्से हैं। ये दोहे उनकी शिक्षाप्रद रचनाओं में से कुछ हैं जो समाज में समस्याओं को उजागर करते हैं और लोगों को उन्हें हल करने के लिए प्रेरित करते हैं। जो निम्नलिखित हैं कुछ लोकप्रिय कबीर के दोहे हिंदी में:

दुःख में सुमिरन सब करे, सुख में करे ना कोय।
जो सुख में सुमिरन करे, दुःख काहे को होय।।

कबीर के दोहे अर्थ सहित:- इस दोहे में कबीर दास कहते हैं कि हमें दुख में ईश्वर का स्मरण करना चाहिए लेकिन सुख के समय ईश्वर का स्मरण नहीं करना चाहिए। यह उनकी समझ का परिणाम है कि जब हम दुख में होते हैं, तब हम ईश्वर की तलाश करते हैं जबकि सुख में हमें ईश्वर का स्मरण करने की आवश्यकता नहीं होती। इस प्रकार, सुख में स्मरण करने की अभ्यास की आवश्यकता होती है ताकि दुख के समय भी ईश्वर के साथ संबंध बनाए रख सकें। इस दोहे के अर्थ को समझने के लिए हमें सुख और दुख के समय ईश्वर का स्मरण करना चाहिए ताकि हम जीवन की समस्याओं से समझौता कर सकें।

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माटी कहे कुम्हार से, तू क्या रौंदे मोहे।
एक दिन आएगा, मै रौंदूँगा तोय।।

अर्थ- इस दोहे में कबीर दास कहते हैं कि माटी कुम्हार से कहती है कि तुम मुझे क्यों रौंदते हो, क्योंकि मैं तो तुम्हारी बनाई गई चीज हूँ। लेकिन एक दिन आएगा, जब मैं तुम्हें रौंदूंगा। इस दोहे का मूल अर्थ है कि हम सब लोग अपने अहंकार में जीते हुए हैं, जो हमें अन्य लोगों से अलग करता है। लेकिन एक दिन सभी मनुष्य मृत्यु को प्राप्त होंगे और हम सब बस माटी बन जाएंगे। इसलिए हमें अपने अहंकार को छोड़कर जीना चाहिए और दूसरों के साथ भाईचारे का संबंध बनाए रखना चाहिए।

कबीर खड़ा बाज़ार में, मंदिर मस्जिद खोए।
ख़रीदा न खिए का, पैसा पचास खोए।।

अर्थ- इस दोहे में कबीर दास कहते हैं कि वह बाजार में खड़ा है और मंदिर और मस्जिद में खोया हुआ है। उन्होंने कुछ नहीं खरीदा है, लेकिन पैसे का खर्च कर दिया है। इस दोहे का मूल अर्थ है कि मनुष्य धर्मस्थलों के भेदभाव के चलते अलग-अलग धर्मों के पक्ष में खड़ा हो जाता है, लेकिन उसे अपने अहंकार के चलते अन्य लोगों से अलग नहीं होना चाहिए। वह धर्मस्थलों में पैसे का खर्च करता है लेकिन उसे अपनी आत्मा को शुद्ध करने के लिए कुछ नहीं खरीदना चाहिए।

Kabir Ke Dohe With Meaning in Hindi

पोथी पढ़ि- पढ़ि जग मुआ, पंडित भया न कोय।
ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय।।

Kabir Ke Dohe With Meaning in Hindi:- इस दोहे में कबीर दास कहते हैं कि जगत में लोग पोथियों को पढ़ते रहते हैं लेकिन उनमें से कोई भी ज्ञानी नहीं बनता। पंडित लोग तो पोथियों का अध्ययन करते हैं, लेकिन वे भी असत्य से घिरे होते हैं। इस दोहे का मूल अर्थ है कि ज्ञान की प्राप्ति शिक्षा और पुस्तकों को पढ़ने से होती है न कि सिर्फ पढ़ने से। सही ज्ञान प्रेम के माध्यम से ही प्राप्त होता है।

जाती न पूछो साधु की, पूछ लीजिये ज्ञान।
मोल करो तलवार का, पड़ा रहन दो म्यान।। 

अर्थ- इस दोहे में कबीर दास कहते हैं कि सच्चे साधु की जाति के बारे में पूछने से कोई लाभ नहीं होता है। बल्कि उससे ज्ञान के बारे में पूछा जाना चाहिए। ज्ञान की मूल्य नहीं जाति की होती है। इस दोहे का मूल अर्थ है कि हमें किसी व्यक्ति को उसकी जाति के आधार पर नहीं फंसाना चाहिए, बल्कि उसके ज्ञान और चरित्र के आधार पर ही उसका मूल्यांकन करना चाहिए।

काम अचारज तंत्र बिचार, सुरति संभोग परी।
जब आवे तब लगाये, बहुरि न लगे डारी।।

अर्थ- इस दोहे में कबीर दास कहते हैं कि काम, अचारज और तंत्र-मंत्र आदि साधनों के बल पर यदि हम सुरति (ध्यान) और संभोग (भोग) की ओर बढ़ते हैं तो उससे केवल आनंद ही मिलता है। लेकिन जब उन आनंदों का अंत होता है तब हमारे पास कुछ नहीं रहता है। इसलिए हमें अपनी साधना में ध्यान और भोग की अभिलाषा को संतुष्ट करते हुए बढ़ते जाना चाहिए।

Kabir Das Ji Ke Dohe Arth Sahit

चलती चक्की देखी कबीरा रोई।
दो पाटन के बिच में, साबुत बचा न कोई।।

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अर्थ- इस दोहे में संत कबीर जी एक चक्की के पास जाते हैं जहां दो पत्थरों के बीच में अन्न पीसा जाता था। संत कबीर ने देखा कि वहां अन्न के अलावा कुछ नहीं बचा था जो उस चक्की की घूमती हुई चाकी से नहीं गिरा था। इस दोहे से संत कबीर जी हमें यह बताते हैं कि हमें अपनी ज़िन्दगी में भी अहमियत रखनी चाहिए कि हम जो कुछ करते हैं, उससे बिना किसी बचाव के कुछ भी नहीं बचता है। इसलिए, हमें सही और अच्छे काम करने की आवश्यकता होती है।

बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय।
जो मन खोजा अपना, तो मुझसे बुरा न कोय।।

अर्थ- इस दोहे में कबीर जी कहते हैं कि मैंने बुरे को देखने के लिए यात्रा की लेकिन मुझे कोई बुरा नहीं मिला। जो मन अपना खोजता है, वह जानता है कि अपने अंदर की बुराई उससे भी बुरी नहीं हो सकती। इस दोहे से हमें यह सीख मिलती है कि हमें सदा अपने अंदर की जांच करनी चाहिए और अपने कुछ गलत वाक्यों या कर्मों को सुधारना चाहिए।

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आर्टिकल का नाम  Kabir Ke Dohe in Hindi Pdf
Kabir Ke Dohe in Hindi Pdf  Download
दोहे की भाषा हिंदी
Format Pdf
Pdf Size 968 KB 

Sant Kabir Ke Dohe in Hindi

काल करे सो आज करों, आज करे सो अब।
पल में परलय होएगी, बहुरि करेगे कब।।

यह दोहा अर्थात है कि काम को टालने से नहीं बल्कि उसे अब ही कर लेना चाहिए। आज जो करना हो, उसे टाल ना करें और अब ही कर लें। क्योंकि कल या फिर अगले समय कभी नहीं आ सकता। वक्त बहुत अमूल्य होता है और इसे व्यर्थ नहीं जाना चाहिए। अगर हम व्यर्थ वक्त बर्बाद करते रहेंगे तो कभी सफलता हासिल नहीं कर सकेंगे।

गुरु गोविन्द दोऊ खड़े, काके लागूं पाँय।
बलिहारी गुरु आपने, गोविन्द दियो बताय।।

इस दोहे का अर्थ है कि गुरु और भगवान दोनों मेरे सामने खड़े होकर मैं किसको नमस्कार करूँ। काका (किसी व्यक्ति का नाम) को मैं किसी अर्थ में नहीं लगाना चाहता हूँ। मैं बलिहारी गुरु को करता हूँ क्योंकि वे मुझे भगवान के बारे में बताते हैं और मुझे उनसे ज्ञान प्राप्त होता है। इस दोहे से यह भी समझाया जाता है कि गुरु बहुत महत्वपूर्ण होते हैं जो हमें धर्म की जानकारी और अनुभव से सम्पन्न करते हैं।

जब मैं था तब हरि नहीं, जब हरि हैं तब मैं नहीं।
सब अंग हैं कामरे तेरे, तेरे अंग समान नहीं।।

ये दोहे साधारण तौर पर मनुष्य की अहंकार को दर्शाते हैं। इन दोहों में समझाया गया है कि जब हम अहंकारी होते हैं तब हम परमात्मा से दूर होते हैं और जब हम वे शुद्ध भावों में जीवन व्यतीत करते हैं तब हम परमात्मा के करीब होते हैं। इस दोहे में समझाया गया है कि हमारे सभी अंग परमात्मा के हैं और ये अंग हमारे अहंकार से कम नहीं हैं।

Kabir Ke Dohe in Hindi

जग में रहना जो चाहे, राम तज न जाने कोय।
तप, त्याग, संजम, सब कुछ, करत उपजे रोय।।

इस दोहे में संयम, तप, त्याग और अन्य साधनों के महत्व को बताया गया है। इस दोहे में बताया गया है कि जो व्यक्ति इस जगत में रहना चाहता है, उसे राम भूल नहीं जाना चाहिए। इस दोहे के अनुसार, संयम, तप, त्याग और अन्य साधन व्यक्ति को राम के दर्शन कराते हैं और उनकी भक्ति को स्थायी बनाते हैं। इसलिए, इन साधनों को अपनाकर व्यक्ति आसानी से राम के दर्शन कर सकता है।

ज्यों नैनों में पुतली, त्यों मालिक घट माहि।
मूरख लोग न जानहिं, बांके कब होत है।।

इस दोहे में संदेहात्मक व्यवहार और निर्णय लेने की गलती के बारे में बताया गया है। इस दोहे में कहा गया है कि जैसे आँखों में एक पुतली होने से मालिक का घट उसमें नहीं हो जाता है, उसी तरह मूर्ख लोग बिना सोचे समझे निर्णय लेने में गलती करते हैं। वे अपने विचारों का समावेश नहीं करते हैं और अपनी भ्रमितियों से अधिक प्रभावित होते हैं। इसलिए उन्हें समझने के लिए समय लगता है और कुछ लोगों के लिए यह एक आवश्यक प्रक्रिया होती है।

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